Many Have Come In My Name, But I Am The Only One Whose Identity Can Be Verified
Monday, December 19, 2022
नमशैतान अभियान: Reorganizing The Caste System
नमशैतान अभियान
सनातनी आत्माओं। आप सबको नमन। भारतवर्ष में सब जगह धर्म का क्षय होता गया है। सारे नेपाल में सिर्फ जनकपुरधाम एक जगह है जहाँ और जगह से कम क्षय हुवा है। समस्त भारत में ९५% ब्राह्मण मांस खाते हैं और दारू पिते हैं। पुजारी और पंडित के परिवारों का भी यही हाल है। ये स्वीकार्य नहीं है। समस्त जातीय व्यवस्था का क्षय हुवा है। वो एकतरफा दरवाजा है। जो लोग हिन्दु धर्म को छोड़ के जाना चाहे उनके लिए खुला है। कोइ लेकिन आना चाहे तो दरवाजा बंद है। कोइ मुसलमान अगर हिन्दु बनना चाहे तो किसी को पता नहीं चलता कि वे किस जातके होंगे। कोइ राजमहल अगर ३,००० साल पुराना हो तो उसमें कोइ रहना नहीं चाहता और वो खंडहर बन जाता है। वहाँ सब आपस में लड़ते झगड़ते हैं कि मेरा कमरा बेहतर है। लेकिन किसी को पता नहीं चलता कि औरों का कमरा कैसा है। सब कहते हैं मेरा कमरा अच्छा है। जातीय व्यवस्था एक खंडहर बन के रह गया है। इस का पुनर्निमाण करना होगा इससे पहले कि ये पुरे के पुरे ढह जाए। अब इसको ऐसा बनाना होगा कि कोइ बाहर से भितर आना चाहे तो किसी भी किस्म का असमंजस ना हो कि ये नया आदमी किस जातका होगा।
९०% ब्राम्हण मांस खाते हैं आज। वो नाम मात्र के ब्राम्हण हैं।
९०% क्षत्रिय लड़ाकु काम न कर के और ही कोइ काम करते हैं। वो नाम मात्र के क्षत्रिय हैं।
५०% वैश्य कृषि या अन्य काम करते हैं, सेना में भी शामिल हो जाते हैं। वो नाम मात्र के वैश्य हैं।
६०% से ज्यादा शुद्र/दलित मध्यम वर्गीय जीवन व्यतीत कर रहे हैं फिर भी उन पर शुद्र/दलित का लेबल चिपका दिया जाता है। इससे सामाजिक नैराश्यता फैलती है।
हिन्दु समाज का नया वर्ण व्यवस्था कुछ इस प्रकार रहेगा।
(१) ब्राह्मण: जो मांस, दारू, धुम्रपान से दुर रहे।
(२) दलित: जो सुवर वा गाय के अलाबे अन्य चीज का मांस खाए।
(२ क) जो मांस खाए लेकिन दारु और धुम्रपान से दुर रहे।
(२ ख) जो दारू और धुम्रपान करे लेकिन मांस न खाए।
(३) महादलित: जो सुवर का मांस खाए।
(४) शुद्र: जो गाय का मांस खाए।
ताकि कोइ अपने जातीय पहचान के बारे में गलत क्लेम न करे उसके लिए लोगों के परिचयपत्र और ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग किया जाएगा।
किसी पर दबाब नहीं डाला जाएगा कि आप अपनी जीवन शैली बदलो। लेकिन कोइ भी गाय का मांस या सुवर का मांस या मांस खानेवाला या दारू पिनेवाला या धुम्रपान करनेवाला अपने परिचय के बारे में गलत क्लेम न कर सकेगा। किसी कन्या का विवाह उनके इच्छा विरुद्ध गलती से किसी शराबी के साथ हो जाने की नौबत नहीं आएगी।
जातपात के व्यवस्था को बदलने का काम सरकार के तरफ से पहलकदमी करनी होगी। व्यापक जनजागरण अभियान चलाना होगा। भारत बहुत बड़ा है। इसिलिए हमें नेपाल से शुरू करना होगा। इसिलिए हम नेपाल में एक सत्य युग समाज पार्टी शुरू करने जा रहे हैं। लेकिन वो कदम लेने से पहले हम छोटे स्तर पर एक प्रयोग करना चाहते हैं कि लोग इस अभियान के प्रति कैसा रुझान दिखाते हैं। ३,००० साल से चली आ रही जातीय व्यवस्था को बदलने के बात के बारे में क्या सोंचते हैं। हमने गुजरात क्युँ चुना? क्यों कि सारे भारत में गुजरात वो जगह है जहाँ बहुत लोग मांस नहीं खाते, दारू नहीं पिते। अगर गुजरातके लोग इस अभियान के प्रति अच्छा प्रतिक्रिया देते हैं तो ये बात सरे उपमहाद्वीप में फ़ैल सकती है। हमने वादनगर क्युं चुना? क्यों कि ये मोदी जी का गृह नगरी है।
हमें कैसा अभियान चाहिए?
इस अभियान का नाम रहेगा नमशैतान अभियान।
नमशैतान अभियान: हिन्दु जनो के सो रहे दैविक आत्माओं को जगाने का अभियान। हिन्दुओं को इस अभियान के तहत ये पहचान करना होगा कि आखिर धर्म के इस तरह क्षय हो जाने का वजह क्या है? जो लोग धर्म के विनाश का असली कारण जान जाएँ वो कल्कि सेना कहलाएंगे। और जो लोग उस सत्य को स्वीकारना नहीं चाहेंगे उन्हें म्लेच्छ कहा जाएगा। अर्थात कलियुग के राक्षस। कल्कि सेना के लोग एक दुसरे को नमस्ते कहेंगे। जो कल्कि सेना के सदस्य नहीं होंगे उन्हें नमशैतान कह के अभिवादन करेंगे।
एक मिति तय किया जाएगा। उस दिन से वो अभिवादन लागु कर दिया जाएगा। जब तक जनजागरण अभियान पुरा न हो जाए तब तक कोइ भी नमशैतान अभिवादन का प्रयोग नहीं करेंगे।
म्लेच्छ कौन?
(१) वो लोग जो मांस खाने वाले ब्राम्हणों को भी ब्राम्हण मानते हो और जो कास्ट सिस्टम की पुनः इंजीनियरिंग करने के बात का विरोध करते हों।
(२) जो लोग पुँजीवाद का समर्थन करते हों और जो कल्किइज्म का विरोध करते हों, पैसारहित समाज का विरोध करते हों।
(३) जो पत्थर में शैतान खोज लेते हैं लेकिन पत्थर में उन्हें भगवान नहीं दिखता।
अभियान का प्रक्रिया। वादनगर में एक झण्डा बेचनेवाला कल्कि सेना के सदस्य के घर पर खड़े करने के लिए झंडा बेचेगा। वो झंडा उन्हें मुफ्त में मिलेगा और साथ में एक रिस्ट बैंड भी। मैं झंडा के वितरक को एक झंडा का ५० रुपया दुंगा। वो सड़क टीम कल्कि सेना के परिवार को ५०० में बेचेगा। मुनाफा का पैसा कल्कि सेना का।
कल्किइज्म क्या है? एक पैसारहित समाज जहाँ प्रत्येक सामान का मुल्य घंटा, मिनट और सेकंड में तय होता है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment